जानिये धर्म का निर्माण कैसे हुआ और क्यों हुआ?
जानिये धर्म का निर्माण कैसे हुआ और क्यों हुआ?
प्राचीन काल में कबीलाई लोग एक-दूसरे कबीले से भोजन के लिये आपस में ही लड़ते रहते थे। इसी लडाई में जिस कबीले में ज्यादा लोग होते थे वो कबीला लडाई जीत जाता था, इसी बात को ध्यान में रखते हुये छोटे कबीले वालों ने आपस में मिलकर एक योजना बनाकर एक प्रतीक बनाया जिसे देवी या देवता के नाम से प्रचारित किया उसके चमत्कार की खबरें फैलाईं।
और कहा हम सब इनकी बातों को मानेंगे तो हम कामयाब होंगे।हम सबको इन्ही ने बनाया है। इसलिये हमें इन्ही को पूजना होगा। धीरे-धीरे दूसरे कबीले के लोग इस सिंबल (प्रतीक) से जुड़ते गये और उनका समूह बढ़ता गया।
इससे हुआ ये कि दूसरे कबीले के लोगों को हराने के लिये सिंबल वाले कबीले का वो लोग भी साथ देने लगे जिनका पूर्व में उस सिंबल बाले कबीले से कोई लेना देना नहीं था।
जैसे आज जो SC/ST के लोग हिंदू धर्म की लड़ाई में साथ देते है। जबकि पूर्व में इनका हिंदू धर्म में कोई लेना देना नहीं था, इसी तर्ज पर दूसरे कबीले वाले भी अलग-अलग तरह के सिंबल बनाकर संगठित होने लगे । धीरे-धीरे कई सिंबल बनते चले गये। फिर एक-दूसरे कबीले के सिंबल को बढा- चढा के बताने का प्रयास चालू हो गया। इसे बढा- चढा के दिखाने के चक्कर में तरह-तरह के कर्मकांड होने लगे। अपने सिंबल को सबसे बड़ा दिखाने के लिये ये कबीले फिर लड़ने लगे।
अब वो सिर्फ अपने ही सिंबल को सर्वोपरि मानने लगे, हर कबीले का मुख्य मकशद अब दूसरे कबीले को खत्म कर अपने कबीले के सिंबल का राज स्थापित करना होने लगा। जहाँ पहले सिर्फ खाने के लिये लड़ते थे अब अपना राज स्थापित करने के लिये क्षैत्रफल बढाने के लिये लड़ने लगे।
आज भी वही स्थिति है, जिस धर्म की जहाँ संख्या ज्यादा है वहाँ उसी का राज है। धर्म का पहला और आखरी मकसद अपने समूह का राज स्थापित करना है। समय के साथ इन कबीलों से बने बड़े समूह को संगठित रखने के लिये तरह तरह के भावनात्मक प्रचार करके धर्म का रूप दे दिया।
और आज भी ऐक दूसरे धर्म के लोग सत्ता पाने के लिये आपस में लड़ रहे है। धर्म अगर परमेश्वर बनाता तो एक ही धर्म होता पूरे संसार का, धर्म और देवी -देवता दोनों को उन परजीवी लोगों ने बनाया है जो बिना मेहनत करे, अपना पेट भर सकें।
जैसे भोजन का स्वाद बढाने के लिये तरह-तरह के मसाले डाले जाते है, वैसे ही धर्म का स्वाद बढाने के लिये तरह -तरह की मसालेदार कहानियां डाली जाती हैं, जिससे लोग भावनात्मक रूप से जुड़े रहें।
धर्म शौषण का दूसरा रूप है।
नोट-ये मेरा मंथन है, आप अपनी राय जरूर दें।
skbhartionline.blogspot.com by SK BHARTI
No comments